विदेशी मुद्रा भंडार 11 अरब डॉलर बढ़कर 561.16 अरब डॉलर पर
विदेशीमुद्रा भंडार में लगातार चौथे सप्ताह तेजी आई है। पिछले सप्ताह देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। वहीं 11 नवंबर को समाप्त सप्ताह गिरावट की मुद्रा गिरावट की मुद्रा में देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 14.72 अरब डॉलर की वृद्धि हुई थी। एक सप्ताह में दूसरी बार सबसे अधिक वृद्धि हुई थी।
गौरतलब है कि अक्टूबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था। वैश्विक घटनाक्रमों के बीच केंद्रीय बैंक के रुपये की विनियम दर में तेज गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का उपयोग करने की वजह से इसमें गिरावट आई।
केंद्रीय गिरावट की मुद्रा बैंक ने कहा कि कुल मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा माने जाने वाली विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) दो दिसंबर को समाप्त सप्ताह में 9.694 अरब डॉलर बढ़कर 496.984 अरब डॉलर हो गईं।
डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाले विदेशीमुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्राओं में आई घट बढ़ के प्रभावों को भी शामिल किया जाता है।
इसके अलावा स्वर्ण भंडार का मूल्य आलोच्य सप्ताह में 1.086 अरब डॉलर बढ़कर 41.025 अरब डॉलर हो गया।
आंकड़ों के अनुसार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 16.4 करोड़ डॉलर घटकर 18.04 अरब डॉलर रह गिरावट की मुद्रा गया।
समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रखा देश का मुद्रा भंडार भी 7.5 करोड़ डॉलर घटकर 5.108 अरब डॉलर रह गया।
भाषा राजेश राजेश रमण
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भारत से लेकर चेक गणराज्य तक के घट रहे विदेशी मुद्रा भंडार, वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड 1 लाख करोड़ डॉलर की कमी
दुनिया भर में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign-Currency Reserves) में काफी तेजी से गिरावट आ रही है. इसकी वजह है कि भारत से लेकर चेक गणराज्य तक, कई देशों के गिरावट की मुद्रा केंद्रीय बैंकों ने अपनी-अपनी मुद्रा को समर्थन देने के लिए हस्तक्षेप किया है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल वैश्विक मुद्रा भंडार लगभग 1 लाख करोड़ डॉलर या 7.8 प्रतिशत घटकर 12 लाख करोड़ डॉलर रह गया है. ब्लूमबर्ग ने इस डाटा को कंपाइल करना साल 2003 से शुरू किया था. विदेशी मुद्रा भंडार में यह तब से लेकर अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है.
इस गिरावट का एक हिस्सा केवल वैल्युएशन में बदलाव के कारण है. अमेरिकी मुद्रा डॉलर, यूरो और येन जैसी अन्य आरक्षित मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. इसने इन मुद्राओं की होल्डिंग की डॉलर वैल्यू को कम कर दिया. लेकिन घटते भंडार भी मुद्रा बाजार में तनाव को दर्शाते हैं, जो केंद्रीय बैंकों की बढ़ती संख्या को मूल्यह्रास को रोकने के लिए अपने खजानों में झांकने के लिए मजबूर कर रहा है.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 96 अरब डॉलर घटा
उदाहरण के लिए, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल 96 अरब डॉलर घटकर 538 अरब डॉलर रह गया है. देश के केंद्रीय बैंक आरबीआई का कहना है अप्रैल से अब तक के वित्तीय वर्ष के दौरान भंडार में आई गिरावट में 67 प्रतिशत का योगदान एसेट वैल्युएशन बदलाव का है. इसका अर्थ है कि शेष गिरावट, भारतीय मुद्रा को आगे बढ़ाने के लिए केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप की वजह से है. रुपये में इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 9 प्रतिशत की गिरावट आई है और पिछले महीने यह रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया.
जापान ने निकाले 20 अरब डॉलर
जापान ने 1998 के बाद पहली बार मुद्रा को समर्थन देने के लिए सितंबर में येन की गिरावट को धीमा करने के लिए लगभग 20 अरब डॉलर खर्च किए. इसका, इस साल जापान के विदेशी मुद्रा भंडार के नुकसान में लगभग 19% हिस्सा होगा. चेक गणराज्य में मुद्रा हस्तक्षेप ने फरवरी से भंडार को 19% कम किया है. हालांकि गिरावट की भयावहता असाधारण है, लेकिन मुद्राओं की रक्षा के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करने की प्रथा कोई नई बात नहीं है. जब विदेशी पूंजी की बाढ़ आती है तो केंद्रीय बैंक डॉलर खरीदते हैं और मुद्रा की वृद्धि को धीमा करने के लिए अपने भंडार का निर्माण करते हैं. बुरे समय में वे इससे पूंजी निकालते हैं.
भारत का भंडार 2017 के स्तर से अभी भी 49% अधिक
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, अधिकांश केंद्रीय बैंकों के पास अभी भी हस्तक्षेप जारी रखने के लिए पर्याप्त शक्ति है. भारत में विदेशी मुद्रा भंडार अभी भी 2017 के स्तर से 49% अधिक है, और नौ महीने के आयात का भुगतान करने के लिए पर्याप्त है. हालांकि कुछ केंद्रीय बैंक ऐसे भी हैं, जहां यह भंडार तेजी से खत्म हो रहा है. इस साल 42% की गिरावट के बाद, पाकिस्तान का 14 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार तीन महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
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रूसी मुद्रा रूबल ने की वापसी, प्रतिबंधों पर उठे सवाल
रूस की मुद्रा रूबल वापस उस जगह पहुंच गया है जहां वह युद्ध शुरू होने से पहले था. इससे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के असर पर संदेह के सवाल उठ रहे हैं. और अमेरिका पर और ज्यादा कड़ाई बरतने का दबाव भी बढ़ा है.
रूस की मुद्रा रूबल दोबारा मजबूत हो चला है. अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद आई गिरावट से उबरकर रूबल ने बुधवार को अपनी पुरानी स्थिति वापस हासिल कर ली थी. रूबल की इस वापसी ने प्रतिबंधों के औचित्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों और अमेरिका, कनाडा, जापान व ऑस्ट्रेलिया आदि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं. इन अभूतपूर्व प्रतिबंधों से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस ने कई कड़े कदम उठाए हैं. वहां के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में 20 प्रतिशत की वृद्धि की है. अपने रूबल के बदले यूरो या डॉलर आदि चाहने वाले लोगों पर भी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं.
हालांकि रूसी कदम बहुत समय तक वहां की अर्थव्यवस्था को संभाल पाएंगे, इसमें विशेषज्ञों को संदेह है लेकिन रूबल की वापसी ने यह बड़ा संकेत दिया है कि मौजूदा रूप में प्रतिबंधों का उतना असर नहीं हो रहा है जितने की संभावना जताई गई थी. यूक्रेन के सहयोगी तो उम्मीद कर रहे थे कि ये प्रतिबंध रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन से अपनी गिरावट की मुद्रा सेनाएं वापस बुलाने पर मजबूर कर देंगे. लेकिन युद्ध को लगभग डेढ़ महीना पूरा होने वाला है और रूस की अपनी मुद्रा को मजबूत बनाए रखने की कोशिशें कम समय के लिए तो कामयाब होती दिख रही हैं.
और ज्यादा कदम उठाने का दबाव
बुधवार को रूबल की कीमत एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85 पर आ गई थी, जो करीब करीब वही स्तर था जो एक महीना पहले हुआ करता था. जबकि 7 मार्च को रूबल एक डॉलर के मुकाबले गिरकर 150 पर जा पहुंचा था. यह तब की बात है जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया था कि उनका देश रूस के तेल और गैस आयात को प्रतिबंधित कर रहा है.पिछले हफ्ते पोलैंड की यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपतिने कहा था कि प्रतिबंधों ने "रूबल को रबल यानी धूल में मिला दिया है.”
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को भी समझ आ रहा है कि प्रतिबंध ज्यादा कामयाब नहीं हो रहे हैं. बुधवार को नॉर्वे की संसद में एक संबोधन में उन्होंने पश्चिमी देशों से और ज्यादा कड़ाई बरतने का आग्रह किया. जेलेंस्की ने कहा, "रूस को शांति स्थापना के लिए तैयार करने का एकमात्र तरीका प्रतिबंध हैं. प्रतिबंध जितने ज्यादा मजबूत होंगे, हम शांति उतनी जल्दी स्थापित कर पाएंगे.”
रूस दुनिया को क्या क्या बेचता है
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युद्ध शरू होने के वक्त इस बात को लेकर आशंकाएं पैदा हो गई थीं कि रूस की ऊर्जा पर निर्भर यूरोपीय देश इस परिस्थिति का सामना कैसे कर पाएंगे. लेकिन तमाम तरह के प्रतिबंधों के बीच भी यूरोपीय देशों ने रूस से तेल और गैस खरीदना बंद नहीं किया है. इससे रूसी अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत पहुंची है.
खेल तो तेल का है
यूक्रेन में जन्मीं और अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वालीं अर्थशास्त्री तान्या बबीना कहती हैं कि ऊर्जा से तो रूस का आधा बजट चलता है. उन्होंने कहा, "रूस के लिए सब कुछ उसका ऊर्जा रेवेन्यू ही है. उसका आधा बजट इसी से चलता है. यही वो चीज है तो पुतिन और युद्ध को चलाए हुए है.” बबीना फिलहाल यूक्रेन के 200 अर्थशास्त्रियों के साथ मिलकर यह अध्ययन कर रही हैं कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का रूस पर कितना और कैसा असर हुआ है.
रूसी रूबल की मजबूती की एक वजह शांति वार्ताओं में हुई प्रगति भी गिरावट की मुद्रा है. तुर्की में जारी शांति वार्ता के बीच इसी हफ्ते रूस ने घोषणा की थी कि वह यूक्रेन की राजधानी कीव पर बमबारी को थाम रहा है. हालांकि अमेरिका और अन्य देशों ने उसकी घोषणा पर संदेह जताया था. लेकिन ऐसा लगता है कि बाजार ने इस पर कुछ भरोसा दिखाया है.
इसके बावजूद प्रतिबंधों का असर तो रूस के जनजीवन और अर्थदशा पर दिख रहा है. दर्जनों अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने वहां कामकाज बंद कर दिया है. इससे हजारों लोगों की नौकरियां गई हैं. प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस की कोशिशें एक हद तक ही काम करेंगी. उदाहरण के लिए रूस का केंद्रीय बैंक एक हद तक ही ब्याज दरें बढ़ा सकता है. साथ ही, रूस यूरोप और अन्य खरीददारों गिरावट की मुद्रा पर रूबल में भुगतान का भी दबावबना रहा है.
कब तक होगा असर
ऐसे में रूस की उम्मीद तेल, गैस और खाद आदि के निर्यात पर है जिसमें चीन और भारत जैसे देश भी उसकी मदद कर रहे हैं. यूरोप को तो उसका तेल जा रहा है, उसने भारत को भी पहले से ज्यादा तेल बेचा है. हालांकि भारत को यह तेल कम दाम पर मिला है. लेकिन रूसी नेता कोशिश कर रहे हैं कि मित्र देशों को उसका निर्यात बना रहे और बढ़े ताकि उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव कम पड़े.
बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के अर्थशास्त्रियों बेन्यामिन हिल्गेनस्टॉक और एलिना रिबाकोवा ने लिखा, "अमेरिका ने पहले ही रूस का तेल और प्राकृतिक गैस लेना बंद कर दिया है. ब्रिटेन ने कहा है कि साल के आखिर तक वह रूस पर अपनी निर्भरता पूरी तरह खत्म कर देगा. लेकिन इन कदमों का ज्यादा अर्थपूर्ण असर तब तक नहीं होगा, जब तक कि यूरोप ऐसा नहीं करता है.”
इन दोनों अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका तीनों ही रूस से तेल और गैस आयात बंद कर दें तो इस साल के आखिर तक उसकी अर्थव्यवस्था 20 प्रतिशत तक सिकुड़ जाएगी. अमेरिका और अन्य आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिबंधों का पूरा असर होने में कुछ समय लगेगा क्योंकि कच्चे माल और पूंजी की कमी से उद्योग धीरे-धीरे बंद होंगे.
दीपावली से पहले देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट
मुंबई । दीपावली से गिरावट की मुद्रा पहले देश के विदेशी मुद्रा भंडार में फिर गिरावट देखी गई है। 14 अक्टूबर, 2022 को समाप्त सप्ताह में यह 4.50 अरब डॉलर घटकर 528.37 अरब डॉलर पर आ गया। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। इसके पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 20.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 532.868 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। विदेशी मुद्रा भंडार में इस साल अगस्त के बाद से पहली बार किसी सप्ताह में बढ़ोतरी हुई थी। एक साल पहले अक्टूबर, 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सार्वजनिक उच्च स्तर पर पर पहुंच गया था। देश का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कई हफ्तों से लगातार कम हो रही है। दरअसल तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में डॉलर के मुकाबले तेजी से गिरते रुपए को संभालने के लिए आरबीआई ने इस विदेशी मुद्रा भंडार के एक हिस्से का इस्तेमाल किया है। आरबीआई के साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, 14 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में फॉरेन करेंसी एसेट (एफसीए) 2.828 अरब डॉलर घटकर 468.668 अरब डॉलर रह गईं। एफसीए असल में समग्र भंडार का एक प्रमुख हिस्सा होता है।
डॉलर में बताई जाने वाली एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है। गोल्ड रिजर्व के मूल्य में 7 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान 1.35 अरब डॉलर की वृद्धि हुई थी जबकि 14 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में यह 1.502 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 37.453 अरब डॉलर रह गया। आरबीआई ने कहा कि स्पेशल ड्राइंग राइट 14.9 करोड़ डॉलर घटकर 17.433 अरब डॉलर रह गया है। वहीं गिरावट की मुद्रा समाप्त हुए सप्ताह में आईएमएफ के पास देश की रिजर्व स्थिति 2.3 करोड़ डॉलर घटकर 4.813 अरब डॉलर रह गई।
रुपया गिरने से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 5 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट, ऐसे विश्वगुरु बनेगा भारत?
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आ रही है. अगस्त में भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली थी. अब सातवें सप्ताह गिरकर 16 सितंबर को ये 545.652 बिलियन डॉलर तक गिर गया है.
भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 5.219 अरब अमेरिकी डॉलर की घटोतरी हुई है. 2 अक्टूबर, 2020 के बाद से ये इसका सबसे निचला स्तर है. पिछले सप्ताह के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 550.871 अरब डॉलर था.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रुपये की कीमत ने रिजर्व बैंक की टेंशन थोड़ी बढ़ा दी है. लिहाजा आरबीआई रुपये की कीमत को नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रहा है.
इन चीजों का असर मुद्रा भंडार पर दिख रहा है. डॉलर में तेजी की वजह से भारतीय रुपया पर लगातार दबाव बना हुआ है.
अगस्त में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली थी. 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 560 अरब डॉलर से गिरकर 553.105 अरब डॉलर पर आ गया था. इसमें 7.941 अरब डॉलर की गिरावट देखने को मिली थी.
इस समय मुद्रा भंडार 2 साल के निचले स्तर पर आ गया था. 26 अगस्त 2022 को समाप्त सप्ताह में विदेशी गिरावट की मुद्रा मुद्रा भंडार 561.046 अरब डॉलर था.
रुपया कमजोर होने से विदेशी मुद्रा भंडार कमजोर होता है. देश को आयात के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं तो जाहिर सी बात है कि खजाना खाली होगा. यह आर्थिक लिहाज से ठीक बात नहीं है.
समाचार एजेंसी पीटीआई गिरावट की मुद्रा के मुताबिक, करीब तीन महीने पहले तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब अमेरिकी डॉलर था.
इसके पहले हफ्ते में भी 2.23 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी आई थी. भारतीय रूपये के गिरने के कारण इसका असर भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है.
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