Sacroiliac Join (SI) Injection Description in Hindi

सैक्रायलियक हमारे शरीर के जोड़, रीढ़ और कूल्हे की हड्डी के बगल में स्थित होता है। यह मनुष्य के शरीर में सबसे महत्वपूर्ण जोड़ों में से एक होता है। यह हमारे बैठने और खड़े होने की स्थिति को संभालता है, इसलिए इस जोड़ में कोई भी सूजन या खिंचाव होने पर बहुत कष्टदाई दर्द का अनुभव होता है।

सैक्रायलियक ज्वाइंट इंजेक्शन या एसआई जॉइंट ब्लॉक निचले कमर दर्द या सियाटिका और सैक्रायलियक ज्वाइंट डिस्फंक्शन से संबंधित किसी भी परेशानी का निदान और उपचार करने में मदद करता है।

बीमारी के लक्षण क्या है?

  • पीठ के निचले हिस्से में एक या दोनों तरफ दर्द होना।
  • कूल्हे, जांघों के किनारों, नितंब और कमर तक दर्द महसूस होना।
  • पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे, नितंब और कमर में अकड़न या कठिनाई महसूस होना।
  • सीढ़ियां चढ़ने उतरने में परेशानी होना।
  • दर्द की तीव्रता का बेहद अधिक होना।
  • झुनझुनी होना।
  • खेलकूद, दौड़ना, सीढ़ियां चढ़ना या वजन उठाते समय दर्द की तीव्रता का बढ़ जाना।
  • कमर के जोड़ों में अस्थिरता महसूस होना। खड़े या चलते समय व्यक्ति संतुलन खो सकता है।

यदि इनमें से कोई भी लक्षण आपको नजर आता है तो इसे नजरअंदाज ना करें। यह सैक्रायलियक जॉइंट रोग संबंधी दर्द हो सकता है। इसे गंभीरता से लें और इसका उपचार कराएं।

बीमारी का कारण क्या है?

शरीर में मौजूद दूसरे जोड़ों की तरह सैक्रायलियक जोड़ में भी लंबे समय तक अधिक काम करने की वजह से या फिर उच्च दबाव के कारण परेशानी जन्म ले सकती है। यह बीमारी बढ़ती उम्र के साथ भी सामने आ सकती है। जोड़ों की दर्द की प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से बढ़ जाती है जिससे कि जोड़ों में समस्या होने लगती है।

इसके अलावा भी कुछ विशिष्ट कारण हो सकते हैं जो कि सैक्रायलियक जोड़ों की शिथिलता और संबंधित दर्द की संभावना को बढ़ा देता है -

  • चाल - पैरों में विकासात्मक विषमता हो जाना, असमान पैर की लंबाई, स्कोलियोसिस आदि परेशानियों से जोड़ों पर अत्यधिक दबाव पड़ सकता है जिससे कि दर्द उभर सकता है।
  • गर्भावस्था और प्रसव - वजन बढ़ना, हार्मोनल चेंज, श्रोणि परिवर्तन के कारण अस्थाई दर्द हो सकता है। जो आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाता है, लेकिन अगर प्रसव के समय कोई नुकसान होता है तो यह दर्द बना रह सकता है।
  • सर्जरी - पिछली पीठ के निचले हिस्से की सर्जरी भी पीठ के जोड़ों को ट्रिगर कर सकती है। मल्टीलेवल फ्यूजन स्पाइन सर्जरी, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, इलियाक बोन ग्राफ्ट सर्जरी के बाद जोड़ों का दर्द उठ सकता है।
  • लंबे समय तक खड़े रहना, खेल के संपर्क में रहना जैसे कि रग्बी, फुटबॉल, मुक्केबाजी, कराटे आदि श्रम दैनिक कार्यों से एसआई जोड़ पर दबाव पड़ सकता है, जिससे कि दर्द उभर सकता है।

यह सैक्रायलियक दर्द के मुख्य कारण है जिनकी वजह से आपको यह दर्द परेशान कर सकता है।

इस बीमारी का उपचार कैसे किया जाता है?

सबसे पहले मरीज को एक टेबल पर नीचे की ओर मुंह करके लेटा दिया जाता है। उसके बाद पीठ के निचले हिस्से, नितंबों की त्वचा को साफ किया जाता है और वहां एक स्थानीय संवेदनाहारी इंजेक्शन लगाया जाता है।

फिर एक्सरे की मदद से चिकित्सक इस क्षेत्र के माध्यम से सीधे आपके सैक्रायलियक जोड़ में इंजेक्शन लगाते हैं। स्थिति की पुष्टि करने के लिए कंट्रास्ट डाई का उपयोग किया जाता है। फिर सुन्न करने वाली दवा और एंटी इन्फ्लेमेटरी कॉर्टिजोन की एक निश्चित खुराक को धीरे-धीरे इंजेक्शन के माध्यम से अंदर डाला जाता है।

सामान्य तौर पर यह प्रक्रिया 30 से 40 मिनट के अंदर समाप्त हो जाती है। 30 मिनट के बाद आपकी पीठ को हिला कर या दबा कर यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि अभी भी दर्द है या नहीं। कुछ समय आराम करने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही चिकित्सक आपको व्यायाम और दवाओं का सेवन करने की भी सलाह देते हैं।

अगले दिन से ही आप अपने सामान्य जीवन को धीरे-धीरे शुरू कर सकते हैं। कुछ दिनों के अंदर ही आपको अपनी सेहत में सुधार दिखने लगता है, लेकिन यदि फिर भी आपको दर्द महसूस होता है तो अपने डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए

नॉमिनल GDP और रियल GDP में क्या अंतर होता है?

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश की आर्थिक स्थिति में बारे में बताता है. जिस देश की GDP बढती जाती है वह विकास की नयी ऊँचाइयों पर चढ़ता जाता है. जीडीपी की गणना के दो प्रमुख प्रकार हैं. एक है नोमिनल GDP और दूसरा है रियल GDP. आइये इस लेख में इन दोनों के बीच अंतर को जानते हैं.

Difference in Nominal GDP & Real GDP

वर्तमान समय में भारत की विकास दर घटती जा रही है.वित्त वर्ष 2019-20 के लिए भारत की विकास दर दूसरे क्वार्टर में घटकर 4.5% पर आ गयी है, जबकि पिछले क्वार्टर में यह 5 फीसदी थी. क्या आप जानते हैं कि यह कौन सी जीडीपी विकास दर है नॉमिनल या रियल. यदि नहीं तो आइये इस लेख में जानते हैं.

सकल घरेलू उत्पाद की परिभाषा (Definition of Gross Domestic Product)

सकल घरेलू उत्पाद से मतलब एक वित्त वर्ष में देश की सीमा के अंदर उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य होता है. इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी लोग उत्पादन करते हैं उसे जीडीपी में जोड़ लिया जाता है और जो भारतीय लोग विदेशों में उत्पादन करते हैं उसे जीडीपी से घटा दिया जाता है.

नॉमिनल GDP का अर्थ (Meaning of Nominal GDP)

जब एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गणना बाजार मूल्यों या कर्रेंट पर प्राइस की जाती है तो जो GDP की वैल्यू प्राप्त होती है उसे नॉमिनल जीडीपी कहते हैं.

रियल GDP का अर्थ (Meaning of Real GDP)

जब एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गणना आधार वर्ष के मूल्य या स्थिर प्राइस पर की जाती है तो जो GDP की वैल्यू प्राप्त होती है उसे रियल जीडीपी कहते हैं.

यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि नॉमिनल GDP में देश की जीडीपी अधिक होती है क्योंकि इसमें इन्फ्लेशन की वैल्यू जुडी होती है. नीचे दी गयी टेबल से यह बात और स्पष्ट हो जाएगी.

REAL-VS-NOMINAL-GDP

क्रय शक्ति समता (Purchasing power parity-PPP) के आधार पर भारत, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और आकार 11 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है जबकि नॉमिनल जीडीपी के हिसाब देखा जाये तो भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसका आकार 2.9 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है.

आइये अब नॉमिनल GDP और रियल GDP के बीच अंतर जानते हैं;

तुलना का आधार

रियल GDP

नॉमिनल GDP

स्थिर मूल्य पर वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य

बाजार मूल्य पर वस्तुओं और सेवाओं का मूल मूल्य

उत्पादों की संख्या X स्थिर मूल्य

उत्पादों की संख्या X बाजार मूल्य

कुल उत्पाद की वैल्यू कम दिखती है क्योंकि इसमें मुद्रा स्फीति घटा दी जाती है

कुल उत्पाद की वैल्यू ज्यादा दिखती है क्योंकि इसमें मुद्रा स्फीति नहीं घटायी जाती है.

गणना आसानी से हो जाती है.

इसकी गणना बहुत कठिन होती है.

इसके आंकड़े विश्वसनीय माने जाते हैं,क्योंकि वे इकॉनमी की सही हालत दिखाते हैं.

इसके आंकड़े कम विश्वसनीय माने जाते हैं क्योंकि वे इकॉनमी की सही हालत नहीं दिखाते हैं.

भारत की अर्थव्यवस्था का आकार

Rs.1,40,77,586 लाख करोड़ (2018-19)

2.93 ट्रिलियन डॉलर (2019)

भारत की विश्व में स्थिति

इसके हिसाब से भारत विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है

ऊपर दिए गये विश्लेषण से यह बात स्पष्ट है कि नॉमिनल GDP की तुलना में रियल GDP का डेटा ज्यादा विश्वसनीय होता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर दिखाता है. यही कारण है कि अर्थशास्त्रियों और रिसर्चर के बीच रियल जीडीपी को ज्यादा पसंद किया जाता है.

Sacroiliac Join (SI) Injection Description in Hindi

सैक्रायलियक हमारे अस्थिरता संकेतक जोड़ें शरीर के जोड़, रीढ़ और कूल्हे की हड्डी के बगल में स्थित होता है। यह मनुष्य के शरीर में सबसे महत्वपूर्ण जोड़ों में से एक होता है। यह हमारे बैठने और खड़े होने की स्थिति को संभालता है, इसलिए इस जोड़ में कोई भी सूजन या खिंचाव होने पर बहुत कष्टदाई दर्द का अनुभव होता है।

सैक्रायलियक ज्वाइंट इंजेक्शन या अस्थिरता संकेतक जोड़ें एसआई जॉइंट ब्लॉक निचले कमर दर्द या सियाटिका और सैक्रायलियक ज्वाइंट डिस्फंक्शन से संबंधित किसी भी परेशानी का निदान और उपचार करने में मदद करता है।

बीमारी के लक्षण क्या है?

  • पीठ के निचले हिस्से में एक या दोनों तरफ दर्द होना।
  • कूल्हे, जांघों के किनारों, नितंब और कमर तक दर्द महसूस होना।
  • पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे, नितंब और कमर में अकड़न या कठिनाई महसूस होना।
  • सीढ़ियां चढ़ने उतरने में परेशानी होना।
  • दर्द की तीव्रता का बेहद अधिक होना।
  • झुनझुनी होना।
  • खेलकूद, दौड़ना, सीढ़ियां चढ़ना या वजन उठाते समय दर्द की तीव्रता का बढ़ जाना।
  • कमर के जोड़ों में अस्थिरता महसूस होना। खड़े या चलते समय व्यक्ति संतुलन खो सकता है।

यदि इनमें से कोई भी लक्षण आपको नजर आता है तो इसे नजरअंदाज ना करें। यह सैक्रायलियक जॉइंट रोग संबंधी दर्द हो सकता है। इसे गंभीरता से लें और इसका उपचार कराएं।

बीमारी का कारण क्या है?

शरीर में मौजूद दूसरे जोड़ों की तरह सैक्रायलियक जोड़ में भी लंबे समय तक अधिक काम करने की वजह से या फिर उच्च दबाव के कारण परेशानी जन्म ले सकती है। यह बीमारी बढ़ती उम्र के साथ भी सामने आ सकती है। जोड़ों की दर्द की प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से बढ़ जाती है जिससे कि जोड़ों में समस्या होने लगती है।

इसके अलावा भी कुछ विशिष्ट कारण हो सकते हैं जो कि सैक्रायलियक जोड़ों की शिथिलता और संबंधित दर्द की संभावना को बढ़ा देता है -

  • चाल - पैरों में विकासात्मक विषमता हो जाना, असमान पैर की लंबाई, स्कोलियोसिस आदि परेशानियों से जोड़ों पर अत्यधिक दबाव पड़ सकता है जिससे कि दर्द उभर सकता है।
  • गर्भावस्था और प्रसव अस्थिरता संकेतक जोड़ें - वजन बढ़ना, हार्मोनल चेंज, श्रोणि परिवर्तन के कारण अस्थाई दर्द हो सकता है। जो आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाता है, लेकिन अगर प्रसव के समय कोई नुकसान होता है तो यह दर्द बना रह सकता है।
  • सर्जरी - पिछली पीठ के निचले हिस्से की सर्जरी भी पीठ के जोड़ों को ट्रिगर कर सकती है। मल्टीलेवल फ्यूजन स्पाइन सर्जरी, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, इलियाक बोन ग्राफ्ट सर्जरी के बाद जोड़ों का दर्द उठ सकता है।
  • लंबे समय तक खड़े रहना, खेल के संपर्क में रहना जैसे कि रग्बी, फुटबॉल, मुक्केबाजी, कराटे आदि श्रम दैनिक कार्यों से एसआई जोड़ पर दबाव पड़ सकता है, जिससे कि दर्द उभर सकता है।

यह सैक्रायलियक दर्द के मुख्य कारण है जिनकी वजह से आपको यह दर्द परेशान कर सकता है।

इस बीमारी का उपचार कैसे किया जाता है?

सबसे पहले मरीज को एक टेबल पर नीचे की ओर मुंह करके लेटा दिया जाता है। उसके बाद पीठ के निचले हिस्से, नितंबों की त्वचा को साफ किया जाता है और वहां एक स्थानीय संवेदनाहारी इंजेक्शन लगाया जाता है।

फिर एक्सरे की मदद से चिकित्सक इस क्षेत्र के माध्यम से सीधे आपके सैक्रायलियक जोड़ में इंजेक्शन लगाते हैं। स्थिति की पुष्टि करने के लिए कंट्रास्ट डाई का उपयोग किया जाता है। फिर सुन्न करने वाली दवा और एंटी इन्फ्लेमेटरी कॉर्टिजोन की एक निश्चित खुराक को धीरे-धीरे इंजेक्शन के माध्यम से अंदर डाला जाता है।

सामान्य तौर पर यह प्रक्रिया 30 से 40 मिनट के अंदर समाप्त हो जाती है। 30 मिनट के बाद आपकी पीठ को हिला कर या दबा कर यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि अभी भी दर्द है या नहीं। कुछ समय आराम करने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही चिकित्सक आपको व्यायाम और दवाओं का सेवन करने की भी सलाह देते हैं।

अगले दिन से ही आप अपने सामान्य जीवन को धीरे-धीरे शुरू कर सकते हैं। कुछ दिनों के अंदर ही आपको अपनी सेहत में सुधार दिखने लगता है, लेकिन यदि फिर भी आपको दर्द महसूस होता है तो अपने डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए

नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में आएगा बदलाव : उर्जित पटेल

नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में आएगा बदलाव : उर्जित पटेल

रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा, कि नोटबंदी प्रक्रिया से अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने वाला प्रभाव होगा। हालांकि, लघु अवधि में इससे कुछ बाधाएं आएंगी और जनता को असुविधा होगी। उन्होंने कहा कि आत्मसंतोष की गुंजाइश काफी कम है और वित्तीय बाजारों में छिटपुट उतार-चढ़ाव से बचाव करना महत्वपूर्ण है। पटेल ने अर्ध वार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट की भूमिका में लिखा है, ‘कुछ बैंक नोटों को वापस लेने का आगे चलकर व्यापक प्रभाव दिखेगा। इससे घरेलू अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय बदलाव आने की संभावना है।’

उर्जित पटेल, गवर्नर रिजर्व बैंक

हालांकि, गवर्नर ने यह स्वीकार किया है, कि 500 और 1,000 के नोट को बंद करने से कुछ समय के लिए लोगों को परेशानियां झेलनी पड़ेगी। बैंकों में पुराने नोट आज तक ही जमा किए जा सकते हैं। इससे 27 नवंबर को एक साक्षात्कार में पटेल ने कहा था कि केंद्रीय बैंक ईमानदार लोगों की परेशानियां दूर करने को प्रतिबद्ध है। पटेल ने लिखा है कि वस्तु एवं सेवा कर तथा दिवाला संहिता जैसे सुधारों से अर्थव्यवस्था का लचीलापन बढ़ेगा। घरेलू वृहद आर्थिक मोर्चे पर स्थिति स्थिर है और मुद्रास्फीति नीचे है। हालांकि पटेल ने स्वीकार किया कि हाल के समय में वृद्धि की रफ्तार कुछ कमजोर पड़ी है। उन्होंने कहा कि देश बैंकिंग में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को अपना रहा है, लेकिन वह घरेलू प्रतिबद्धताओं की अनदेखी नहीं कर रहा है।

उधर दूसरी तरफ भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है, कि वस्तु एवं सेवा कर ( जीएसटी ) तथा नोटबंदी में अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने की क्षमता है, हालांकि, इसकी वजह से जनता को कुछ असुविधा तथा वृद्धि दर पर क्षणिक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। पर केंद्रीय केंद्रीय बैंक ने देश में बैंकों की संपत्ति (ऋण कारोबार) की गुणवत्ता में लगातार गिरावट पर चिंता जताई है। रिजर्व बैंक द्वारा भारत में 2015-16 में बैंकिंग क्षेत्र के रुझानों तथा प्रगति ( आरटीपी ) तथा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट ( एफएसआर ) के 14वें संस्करण में ये निष्कर्ष निकाले गए हैं।

रिज़र्व बैंक की रपट में कहा गया है, कि 2016-17 में कारपोरेट क्षेत्र के वित्तीय प्रदर्शन में सुधार हुआ है, लेकिन कारोबार के लिए झटका लगने का जोखिम कायम है। इसके अलावा बड़े कर्जदारों की अस्थिरता संकेतक जोड़ें संपत्ति की गुणवत्ता में उल्लेखनीय गिरावट आई है।

गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने एफएसआर के आमुख में लिखा है कि 500 और 1,000 के नोटों को बंद करने के फैसले से आगे चलकर दूरगामी बदलाव आएंगे । उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में लघु अवधि की बाधा तथा जनता को हुई परेशानी के बावजूद इससे घरेलू अर्थव्यवस्था में आगे समय के साथ बड़ा बदलाव आएगा। भुगतान के डिजिटल तरीके को अपनाने से अधिक मध्यस्थता, दक्षता लाभ बढ़ेगा तथा जवाबदेही में इजाफा होगा और पारदर्शिता भी सुधरेगी। गवर्नर पटेल ने साथ ही आगाह किया कि इसी पर संतोष कर बैठने से काम नहीं चलने वाला है। इसके साथ साथ वित्तीय बाजारों को बार-बार के उतार-चढ़ाव से बचाने की भी जरूरत है। केंद्रीय बैंक ने आगे कहा कि बैंकिंग स्थिरता संकेतकों से पता चलता है कि संपत्ति की गुणवत्ता, कम लाभ तथा तरलता में निरंतर गिरावट से बैंकिंग क्षेत्र का जोखिम ऊंचे स्तर पर हैं।

बैंकों की कारोबार वृद्धि कमजोर बनी हुई है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निजी क्षेत्र के बैंकों से पीछे हैं। प्रणाली के स्तर पर 2016-17 की पहली छमाही में बैंकों के लाभ में सालाना आधार पर गिरावट आई है।

रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, कि मार्च और सितंबर, 2016 के दौरान बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता और नीचे आई है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास जोखिम वाली सम्पत्तियों के आगे पूंजी का अनुपात (सीआरएआर) निचले स्तर पर है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल गैर निष्पादित अग्रिम ( जीएनपीए ) सितंबर, 2016 में बढ़कर 9.1 प्रतिशत हो गया जो मार्च में 7.8 प्रतिशत था। इससे कुल दबाव वाले अग्रिम का अनुपात 11.5 से बढ़कर 12.3 प्रतिशत हो गया है।

एफएसआर में कहा गया है कि कुल मिलाकर भारत की वित्तीय प्रणाली स्थिर है। हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक विशेषरूप से उल्लेखनीय दबाव के स्तर पर हैं।

म्यूचुअल फंड: कम रिस्क के साथ चाहिए ज्यादा रिटर्न तो इंडेक्स फंड में करें निवेश, ये हैं टॉप 7 फंड

कोरोना महामारी के कारण बाजार में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। इसका असर म्यूचुअल फंड पर भी पड़ा है, और इसी का नतीजा है कि पिछले 3 से 6 महीनों में इसकी कई कैटेगरी में निगेटिव रिटर्न मिला या रिटर्न कम रहा है। ऐसे में लोग अब म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने से हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में जो म्यूचुअल फंड निवेशक कम से कम जोखिम के साथ अच्छा रिटर्न चाहते हैं, उनके लिए इंडेक्स फंड सही ऑप्शन हो सकते हैं।

क्या हैं इंडेक्स फंड?
इंडेक्स फंड शेयर बाजार के किसी इंडेक्स मसलन निफ्टी 50 या सेंसेक्स 30 में शामिल कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं। इंडेक्स में सभी कंपनियों का जितना वेटेज होता है, स्कीम में उसी रेश्यो में उनके शेयर खरीदे जाते हैं। इसका मतलब यह है कि ऐसे फंडों का प्रदर्शन उस इंडेक्स जैसा ही होता है। यानी इंडेक्स का प्रदर्शन बेहतर होता है तो उस फंड में भी बेहतर रिटर्न की गुंजाइश होती है।

एक्सपेंस रेश्यो रहता है कम
इंडेक्स फंड में निवेश करने का खर्च अपेक्षाकृत कम होता है। बता दें कि अन्य प्रत्यक्ष रूप से प्रबंधित म्युचुअल फंडों में जहां एसेट मैनेजमेंट कंपनी तकरीबन 2% तक शुल्क वसूलती है, वहीं इंडेक्स फंडों का शुल्क बहुत कम यानी कि तकरीबन 0.5% से 1 के बीच होता है।

डाइवर्सिफिकेशन का मिलता है फायदा
इंडेक्स फंड से निवेशक अपना पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाई कर सकते हैं। इससे नुकसान की संभावना घट जाती है। अगर एक कंपनी के शेयर में कमजोरी आती है तो दूसरे में ग्रोथ से नुकसान कवर हो जाता है। इसके अलावा इंडेक्स फंडों में ट्रैकिंग एरर कम होता है। इससे इंडेक्स को इमेज करने की एक्यूरेसी बढ़ जाती है। इस तरह रिटर्न का सटीक अनुमान लगाना आसान हो जाता है।

कितना देना होता है टैक्स?
12 महीने से कम समय में निवेश भुनाने पर इक्विटी फंड्स से कमाई पर शार्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) टैक्स लगता है। यह मौजूदा नियमों के हिसाब से कमाई पर 15% तक लगाया जाता है। अगर आपका निवेश 12 महीनों से ज्यादा के लिए है तो इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) माना जाएगा और इस पर 10% ब्याज देना होगा।

किसके लिए सही हैं इंडेक्स फंड?
इंडेक्स फंड उन निवेशकों के लिए सही हैं जो कम रिस्क के साथ शेयरों में निवेश करना चाहते हैं। इंडेक्स फंड ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर है जो रिस्क कैलकुलेट करके चलना चाहते हैं, भले ही कम रिटर्न मिले।

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