भारत में मुद्रा की परिवर्तनीयता
प्रथम विश्व युद्ध से पहले पूरी दुनिया में स्वर्णमान (गोल्ड स्टैण्डर्ड) के मानक होते थे, जिसके तहत मुद्राओं का मूल्य सोने के रूप में एक स्थिर दर पर निश्चित किया जाता था । लेकिन 1971 में ब्रेटन वुड्स प्रणाली की विफलता के बाद इस प्रणाली को बदल दिया गया। मुद्रा की परिवर्तनीयता से तात्पर्य एक ऐसी प्रणाली से है जिसके अंतर्गत एक देश की मुद्रा विदेशी मुद्रा में परिवर्तित हो जाती है और विलोमशः भी। 1994 के विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता बाद से भारतीय रुपया चालू खाते के लेन-देन में पूरी तरह से परिवर्तनीय बना दिया गया।
प्रथम विश्व युद्ध से पहले पूरी दुनिया में स्वर्णमान (गोल्ड स्टैण्डर्ड) के मानक होते थे, जिसके तहत मुद्राओं का मूल्य सोने के रूप में एक स्थिर दर पर निश्चित किया जाता था । लेकिन 1971 में ब्रेटन वुड्स प्रणाली की विफलता के बाद इस प्रणाली को बदल दिया गया। मुद्रा की परिवर्तनीयता से तात्पर्य एक ऐसी प्रणाली से है जिसके अंतर्गत एक देश की मुद्रा विदेशी विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता मुद्रा में परिवर्तित हो जाती है और विलोमशः भी। 1994 के बाद से भारतीय रुपया चालू खाते के लेन-देन में पूरी तरह से परिवर्तनीय बना दिया गया।
सन विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता 1971 में ब्रेटनवुड्स प्रणाली की विफलता के बाद बहुत से देशों ने गोल्ड आधारित विनिमय प्रणाली से हटकर अस्थायी विदेशी विनिमय दर प्रणाली की तरफ रुख कर लिया। अस्थायी या लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत, विभिन्न राष्ट्रीय मुद्राओं के बीच विनिमय दरों को बाजार में मांग और आपूर्ति के माध्यम से निर्धारित किया जाता है।
रुपये की परिवर्तनीयता:
1992-93 में पहली बार केंद्रीय आम बजट ने भारतीय रुपये को आंशिक रूप से विदेशी मुद्रा में परिवर्तनीय बना दिया था । यह विश्व के साथ कि भारतीय अर्थव्यवस्था के तत्कालीक एकीकरण हेतु एक अनिवार्य कदम था। इसी क्रम में भुगतान संतुलन में चालू खाते के गंभीर संकट अथवा घाटे की स्थिति से उबरने के लिए भारत सरकार ने 1 मार्च, 1992 से रुपये की आंशिक विनिमयता की शुरुआत की।
इस प्रणाली के तहत, जिसमें एक वर्ष की अवधि के लिए संचालन में बने रहने हेतु, मुद्रा आय का 60 फीसदी भाग बाजार से निर्धारित विनिमय दर पर रुपये में परिवर्तनीय था और शेष 40 प्रतिशत आय आधिकारिक तौर पर तय की गई विनिमय दर के आधार पर रुपये में परिवर्तनीय थी। एक मुद्रा की परिवर्तनीयता यह इंगित करती है कि इसे स्वतंत्र रूप से किसी भी अन्य विदेशी मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है। परिवर्तनीयता का निर्धारण बाजार में मुद्रा की माँग और पूर्ति के आधार पर होता है।
चालू खाता परिवर्तनीयता: अर्थ
चालू खाते की परिवर्तनीयता का मतलब है कि मुद्रा की सीमा पार आवाजाही पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है।चालू खाता विनिमयता, लक्ष्यों, सेवाओं और आय के साधनों के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा से संबंधित भुगतान पर प्रतिबंध हटाने से संबंधित है, जबकि पूंजी खाता परिवर्तनीयता का तात्पर्य यह है कि यदि कोई निवेशक (माना कि भारतीय) विदेशों में कोई संपत्ति खरीदना चाहता है तो उसको अपनी सरकार से उसके रुपया को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित करना पड़ता है। यदि सरकार रुपया को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित कर देती है तो वह विदश में संपत्ति खरीद सकता है अन्यथा नहीं ।
चालू खाता परिवर्तनीयता को निम्न अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए विदेशी मुद्रा बेचने अथवा खरीदने की स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया गया है:
(क) इसमें मुख्य रूप से आयत, निर्यात तथा अदृश्य व्यवहार आते हैं ।
(ख) अर्थात सभी चालू व्यापारिक लें देनों जिसमें यात्रा , शिक्षा, चिकित्सा, सम्बन्धी व्यय होते हैं
पूंजी खाता की परिवर्तनीयता- इसके अंतर्गत विदेशी सहायता (निवल) बाजार उधारी (निवल), अनिवाशी जमा तथा अन्य पूंजी मदें आती हैं इस प्रकार पूंजी खाते की परिवर्तनीयता का अर्थ हुआ प्रत्येक विदेशी व्यव्हार के लिए बाजार की शक्तियों द्वारा निर्धारित विदेशी विनिमय दर पर विदेशी की आपूर्ति ।
रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता का अर्थ- चालू खाते और पूंजी खाते पर होने वाले सभी व्यवहारों को पूरा करने के लिए रुपये को किसी भी स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तित करने कि स्वतंत्रता से है। पूंजी खाते पर परिवर्तनीयता का अर्थ हुआ पूंजी के अन्त्रप्रवाह तथा बहिर्गमन , भारतियों द्वारा भारत में संपत्ति को बेचना तथा प्राप्त रुपया को देश के बाहर ले जाने पर या किसी विदेशी मुद्रा में अपना जमा रखने पर पूर्ण स्वतंत्रता । इस प्रकार पूंजी खाता की परिवर्तनीयता का अर्थ घरेलू वित्तीय संपत्तियों तथा विदेशी संपत्तियों को विदेशी संपत्तियों में बाजार निर्धारित विदेशी विनिमय दर पर बदलने की स्वतंत्रता से है ।
पूंजी खाता विनिमयता की वर्तमान स्थिति-
(क) भारत में प्रत्यक्ष और पोर्टफोलियो निवेश शुरू करने के लिए विदेशी निवेशकों और अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के लिए पूंजी खाता विनिमयता मौजूद है।
(ख) विदेशों में 4 मिलियन अमेरिका डालर से अधिक के भारतीय निवेश को स्वत: ही कुछ शर्तों के साथ भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी मिल जाती है।
(ग) सितंबर 1995 में, भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशों में 4 लाख डॉलर से अधिक के विदेशी निवेश या फास्ट ट्रैक मंजूरी के लिए अयोग्य लोगों के निवेश से जुड़े सभी आवेदनों की प्रक्रिया के लिए एक विशेष समिति का गठन किया था।
पूंजी खाता पर परिवर्तनीयता के सम्बन्ध में रिज़र्व बैंक द्वारा s s तारापोर कि अध्यक्षता में गठित समिति ने जून 1997 में कुछ निश्चित दशाओं की पूर्ति पर क्रमिक ढंग से पूंजी खाते पर परिवर्तनीयता कि सिफारिस की है समितीने जिन शर्तों का उल्लेख किया है वे हैं.
राजकोषीय घाटा का सकल घरेलु उत्पाद का 3.5% होना, स्फीति की दर का 5% होना , कुशल वित्तीय प्रणाली तथा विदेशी मुद्रा भंडार का कम से कम 26 बिलियन डॉलर का होना । समिति ने सुझाव दिया कि अभी पूंजी खाते पर परिवर्तनीयता के लिए उपयुक्त समय नहीं है ।
पूंजी खाता परिवर्तनीयता (जुलाई 2006) पर तारापोर समिति की दूसरी रिपोर्ट:
1991 के बाद की अवधि में भुगतान संतुलन की बढ़ती ताकत के साथ और मजबूत बाह्य क्षेत्र और प्रत्येक वर्ष शक्ति में वृद्धि तथा उच्च विकास पूंजी नियंत्रण के लिए अनुकूल वातावरण में छूट मिलने के साथ के सापेक्ष मैक्रो आर्थिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद आरबीआई ने 20 मार्च 2006 को एक कमेटी का गठन किया जिसका अध्यक्ष श्री एस.एस तारापोर को बनाया गया था । कमेटी ने 31 जुलाई, 2006 को रिजर्व बैंक को अपनी रिपोर्च सौंपी।
समिति ने मौजूदा पूंजीगत अवरोधों की समीक्षा के बाद तीन चरणों में पूंजी परिवर्तनीयता की तरफ बढ़ने के लिए एक व्यापक पंचवर्षीय योजना तैयार की ।
निष्कर्ष: उपरोक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत के पास अब तक का सर्वाधिक 360 बिलियन का मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार है। जो कि एक आरामदायक स्तिथि विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता है परन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अभी भी भारत की अर्थव्यस्था दुनिया की अन्य बड़ी और मजबूत अर्थव्यस्थाओं के मुकाबले काफी कमजोर है इसलिए इसे पूंजी खाते में पूर्ण परिवर्तनीयता की अनुमति नहीं दी चाहिए ।
रुपये को 80 पार जाने से रोकने के लिए RBI ने बेच दिए 13 अरब डॉलर, जानिए अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से भारतीय रुपया दबाव में है. रिजर्व बैंक अस्थिरता पर अंकुश लगाने और रुपये के गिरते मूल्य को थामने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में नियमित रूप से हस्तक्षेप कर रहा है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये को और गिरने से रोकने के अपने प्रयासों के तहत स्पॉट मार्केट में 13 अरब डॉलर बेच दिए. आरबीआई ने यह कदम विदेशी मुद्रा में गिरावट को देखते हुए उठाया है. फिलहाल रुपया 80 रुपये के आसपास टिका हुआ है. फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में आरबीआई द्वारा करेंसी मार्केट में किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा हस्तक्षेप है.
बता दें कि, आरबीआई की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 29 जुलाई से दो सितंबर के बीच लगातार पांच सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 21 अरब डॉलर घटकर 553.1 अरब डॉलर रह गया. इसमें पिछले हफ्ते की तुलना में 7.941 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता की कमी आई. इससे पहले 26 अगस्त को समाप्त हुए हफ्ते के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 561.046 अरब डॉलर था.
आंतरिक अनुमान दिखाते हैं कि 29 जुलाई से 2 सितंबर के बीच 21 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार में से, 7 अरब डॉलर का अवमूल्यन नॉन-डॉलर एसेट्स में हो गया. वहीं, ऐसा माना जा रहा है कि बाकी के 13 अरब डॉलर को स्पॉट मार्केट में बेच दिया गया.
दरअसल, फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स को बनाए रखने के लिए मुद्रा दर को स्थिर रखना बेहद जरूरी होता है जो कि फिलहाल भारतीय बाजारों से तेजी से निवेश निकाल रहे हैं. 29 अगस्त को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचकर 80.13 पर आ गया था.
वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी से मांग में कमी आएगी और अमेरिका में मंदी की आशंका बढ़ जाएगी. यह पूंजी निकासी की गति को और तेज कर सकता है, रुपये को कमजोर कर सकता है और इससे आयातित मुद्रास्फीति का खतरा बढ़ा सकता है.
फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से भारतीय रुपया दबाव में है. रिजर्व बैंक अस्थिरता पर अंकुश लगाने और रुपये के गिरते मूल्य को थामने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में नियमित रूप से हस्तक्षेप कर रहा है.
इस बीच, हाल ही में आरबीआई और वित्त मंत्रालय ने बैंकों के शीर्ष प्रबंधन और व्यापार निकायों के प्रतिनिधियों को रुपये मुद्रा में निर्यात और आयात संबंधी लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए कहा है. सूत्रों ने कहा कि एक बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि डॉलर के बजाय भारतीय मुद्रा में सीमापार व्यापार की सुविधा के लिए विशेष रुपया खाते खोलने को लेकर बैंकों को अपने विदेशी समकक्षों के साथ जुड़ना चाहिए.
cdestem.com
एक विदेशी मुद्रा विकल्प अपने मालिक को एक निश्चित तिथि पर या उससे पहले एक निश्चित मूल्य (स्ट्राइक प्राइस के रूप में जाना जाता है) पर मुद्रा खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन दायित्व नहीं। इस अधिकार के बदले में, खरीदार विक्रेता को एक अग्रिम प्रीमियम का भुगतान करता है। विक्रेता द्वारा अर्जित आय प्राप्त प्रीमियम भुगतान तक ही सीमित है, जबकि खरीदार के पास सैद्धांतिक रूप से असीमित लाभ क्षमता है, जो प्रासंगिक विनिमय दर की भविष्य की दिशा पर निर्भर करता है। विदेशी मुद्रा विकल्पों का उपयोग विनिमय दरों में परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की संभावना से बचाव के लिए किया जाता है। विदेशी मुद्रा विकल्प एक निश्चित भविष्य की तिथि सीमा के भीतर मुद्राओं की खरीद या बिक्री के लिए उपलब्ध हैं, विकल्प अनुबंध के लिए निम्नलिखित विविधताएं उपलब्ध हैं:
- अमेरिकी विकल्प. विकल्प अवधि के भीतर किसी भी तारीख को विकल्प का प्रयोग किया जा सकता है, ताकि डिलीवरी अभ्यास की तारीख के दो व्यावसायिक दिनों के बाद हो।
- यूरोपीय विकल्प. विकल्प का उपयोग केवल समाप्ति तिथि पर किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि वितरण समाप्ति तिथि के दो व्यावसायिक दिनों के बाद होगा।
- बरमूडान विकल्प. विकल्प का प्रयोग केवल कुछ पूर्व निर्धारित तिथियों पर ही किया जा सकता है।
एक विदेशी मुद्रा विकल्प का धारक इसका प्रयोग तब करेगा जब स्ट्राइक मूल्य मौजूदा बाजार दर से अधिक अनुकूल होगा, जिसे इन-द-मनी कहा जाता है। यदि स्ट्राइक मूल्य मौजूदा बाजार दर से कम अनुकूल है, तो इसे आउट-ऑफ-द-मनी कहा जाता है, इस स्थिति में विकल्प धारक विकल्प का प्रयोग नहीं करेगा। यदि विकल्प धारक असावधान है, तो यह संभव है कि इसकी समाप्ति तिथि से पहले इन-द-मनी विकल्प का प्रयोग नहीं किया जाएगा। विकल्प अनुबंध में उल्लिखित अधिसूचना तिथि तक विकल्प अभ्यास की सूचना प्रतिपक्ष को दी जानी चाहिए।
एक विदेशी मुद्रा विकल्प दो प्रमुख लाभ प्रदान करता है:
- नुकसान की रोकथाम. हानि के जोखिम से बचाव के लिए एक विकल्प का प्रयोग किया जा सकता है, जबकि विनिमय दरों में अनुकूल परिवर्तन से लाभ की संभावना को अभी भी खुला छोड़ दिया गया है।
- तिथि परिवर्तनशीलता. ट्रेजरी कर्मचारी एक पूर्व निर्धारित तिथि सीमा के भीतर एक विकल्प का प्रयोग कर सकते हैं, जो तब उपयोगी होता है जब अंतर्निहित एक्सपोजर के सटीक समय के बारे में अनिश्चितता होती है।
ऐसे कई कारक हैं जो मुद्रा विकल्प की कीमत में प्रवेश करते हैं, जिससे यह पता लगाना मुश्किल हो सकता है कि उद्धृत विकल्प मूल्य उचित है या नहीं। ये कारक हैं:
- निर्दिष्ट स्ट्राइक मूल्य और वर्तमान हाजिर मूल्य के बीच का अंतर। एक विकल्प का खरीदार एक स्ट्राइक मूल्य चुन सकता है जो उसकी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल हो। एक स्ट्राइक मूल्य जो मौजूदा हाजिर कीमत से काफी दूर है, कम खर्च होगा, क्योंकि विकल्प का प्रयोग करने की संभावना कम है। हालांकि, इस तरह के स्ट्राइक प्राइस को सेट करने का मतलब है कि खरीदार एक विकल्प के पीछे कवर मांगने से पहले विनिमय दर में महत्वपूर्ण बदलाव से जुड़े नुकसान को अवशोषित करने के लिए तैयार है।
- विकल्प अवधि के दौरान दो मुद्राओं के लिए वर्तमान ब्याज दरें।
- विकल्प की अवधि।
- बाजार की अस्थिरता। यह अपेक्षित राशि है जिसके द्वारा विकल्प अवधि के दौरान मुद्रा में उतार-चढ़ाव की उम्मीद है, उच्च अस्थिरता के साथ यह अधिक संभावना है कि एक विकल्प का प्रयोग किया जाएगा। अस्थिरता एक अनुमान है, क्योंकि इसकी भविष्यवाणी करने का कोई मात्रात्मक तरीका नहीं है।
- विकल्प जारी करने के लिए प्रतिपक्षों की इच्छा।
बैंक आम तौर पर तीन महीने से अधिक की विकल्प अभ्यास अवधि की अनुमति नहीं देते हैं। मुद्रा विकल्प के भीतर एकाधिक आंशिक मुद्रा वितरण की व्यवस्था की जा सकती है।
मानक मात्राओं के लिए एक्सचेंज ट्रेडेड विकल्प उपलब्ध हैं। इस प्रकार का विकल्प प्रतिपक्ष विफलता के जोखिम को समाप्त करता है, क्योंकि एक्सचेंज का संचालन करने वाला क्लियरिंग हाउस एक्सचेंज पर कारोबार किए गए सभी विकल्पों के प्रदर्शन की गारंटी देता है।
उच्च मुद्रा मूल्य अस्थिरता की अवधि के दौरान विदेशी मुद्रा विकल्प विशेष रूप से मूल्यवान होते हैं। दुर्भाग्य से खरीदार के दृष्टिकोण से, उच्च अस्थिरता उच्च विकल्प कीमतों के बराबर होती है, क्योंकि इस बात की अधिक संभावना है कि प्रतिपक्ष को विकल्प खरीदार को भुगतान करना होगा।
रुपये को 80 पार जाने से रोकने के लिए RBI ने बेच दिए 13 अरब डॉलर, जानिए अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से भारतीय रुपया दबाव में है. रिजर्व बैंक अस्थिरता पर अंकुश लगाने और रुपये के गिरते मूल्य को थामने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में नियमित रूप से हस्तक्षेप कर रहा है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये को और गिरने से रोकने के अपने प्रयासों के तहत स्पॉट मार्केट में 13 अरब विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता डॉलर बेच दिए. आरबीआई ने यह कदम विदेशी मुद्रा में गिरावट को देखते हुए उठाया है. फिलहाल रुपया 80 रुपये के आसपास टिका हुआ है. फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में आरबीआई द्वारा करेंसी मार्केट में किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा हस्तक्षेप है.
बता दें कि, आरबीआई की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 29 जुलाई से दो सितंबर के बीच लगातार पांच सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 21 अरब डॉलर घटकर 553.1 अरब डॉलर रह गया. इसमें विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता पिछले हफ्ते की तुलना में 7.941 अरब डॉलर की कमी आई. इससे पहले 26 अगस्त को समाप्त हुए हफ्ते के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 561.046 अरब डॉलर था.
आंतरिक अनुमान दिखाते हैं कि 29 जुलाई से 2 सितंबर के बीच 21 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार में से, 7 अरब डॉलर का अवमूल्यन नॉन-डॉलर एसेट्स में हो गया. वहीं, ऐसा माना जा रहा है कि बाकी के 13 अरब डॉलर को स्पॉट मार्केट में बेच दिया गया.
दरअसल, फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स को बनाए रखने के लिए मुद्रा दर को स्थिर रखना बेहद जरूरी होता है जो कि फिलहाल भारतीय बाजारों से तेजी से निवेश निकाल रहे हैं. 29 अगस्त को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचकर 80.13 पर आ गया था.
वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी से मांग में कमी आएगी और अमेरिका में मंदी की आशंका बढ़ जाएगी. यह पूंजी निकासी की गति को और तेज कर सकता है, रुपये को कमजोर कर सकता है और इससे आयातित मुद्रास्फीति का खतरा बढ़ा सकता है.
फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से भारतीय रुपया दबाव में है. रिजर्व बैंक अस्थिरता पर अंकुश लगाने और रुपये के गिरते मूल्य को थामने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में नियमित रूप से हस्तक्षेप कर रहा है.
इस बीच, हाल ही में आरबीआई और वित्त मंत्रालय ने बैंकों के शीर्ष प्रबंधन और व्यापार निकायों के प्रतिनिधियों को रुपये मुद्रा में निर्यात और आयात संबंधी लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए कहा है. सूत्रों ने कहा कि एक बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि डॉलर के बजाय भारतीय मुद्रा में सीमापार व्यापार की सुविधा के लिए विशेष रुपया खाते खोलने को लेकर बैंकों को अपने विदेशी समकक्षों के साथ जुड़ना चाहिए.
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 381