बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (फाइल फोटो)

वायदा कारोबार से जुड़े एक्सचेंज नए विकल्प की तलाश में

वायदा कारोबार से जुड़े देश के प्रमुख एक्सचेंज अपने व्यापार में होने वाली गिरावट की भरपाई व निवेशकों के हित को ध्यान में रखते हुए विकल्प की तलाश में लग गए है। अब वे उन जिंसों के वायदा कारोबार पर जोर देने की सोच रहे हैं जो या तो गैर कृषि है या फिर कम विवादित जिंस है। आने वाले समय में वे ऊर्जा, धातु व सोने व चांदी के वायदा कारोबार पर अधिक जोर देने की नीति बना रहे है।

एनसीडीईएक्स कृषि से जुड़ी जिंसों के वायदा कारोबार से जुड़ी अनिश्चितिता को देखते हुए कई विकल्पों की तलाश में जुट गया है। एनसीडीईएक्स का रोजाना के कारोबार का 85 फीसदी हिस्सा कृषि से जुड़ी जिंसों के जरिए होता है। वे अपने एक्सचेंज में गैर कृषि जिंसों को जोड़ने की तैयारी कर रहे है। एनसीडीईएक्स के अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अब वे गैर कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर ज्यादा जोर देना चाहेंगे।

कृषि से जुड़े जिंसों में वे उन्हीं जिंसों को शामिल करना चाहेंगे जो आवश्यक वस्तु की परिधि में नहीं आता है या फिर कम विवादित है। एमसीएक्स के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि महंगाई पर अंकुश लगाने को लेकर सरकार के कदम को देखते हुए एक्सचेंज आने वाले समय में धातु व सोने व चांदी जैसी चीजों के कारोबार पर विशेष ध्यान देगा। हालांकि एमसीएक्स के रोजाना के कारोबार में कृषि से जुड़ी आवश्यक जिंसों का खास योगदान नहीं है।

सोया तेल, चना, रबर व आलू के वायदा पर प्रतिबंध से एक्सचेंज के रोजाना के कारोबार में 10 से 25 फीसदी की गिरावट आ सकती है। एनसीडीईएक्स का रोजाना का कारोबार 2,000 करोड़ रुपये का है। इस पाबंदी से इसके कारोबार में 20-25 फीसदी की गिरावट आ जाएगी।

जबकि एमसीएक्स के कुल कारोबार में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स व एनएमसीई के कुल कारोबार में रोजाना 1000 से 1200 करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका है। इन तीनों एक्सचेंजों में सोया तेल का कारोबार 400 करोड़ रुपये का तो चने का कारोबार 500 करोड़ रुपये का।

Gold Rate in Chhattisgarh : निवेश के लिए सोना अभी बेहतर विकल्प, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Gold Rate in Chhattisgarh : निवेश के लिए सोना अभी बेहतर विकल्प, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Gold Rate In Chhattisgarh :बिलासपुर। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीली धातु फिर से ऊंचाई पर चला गया है। भारत में इसने फिर एक नया रिकॉर्ड बनाया। देश के सबसे बड़े वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर सोने का भाव लगातार बढ़ रहा है। न्यायधानी के कमोडिटी एक्सपर्ट का मानना है कि गोल्ड में निवेश करने का यह एक अच्छा समय है।

शहर में 24 कैरेट का 10 ग्राम सोने का भाव आज 42 हजार आठ सौ रुपये पहुंच गया है। सपोर्ट में चांदी का दाम भी आसमान छू रहा है। शुक्रवार को बिलासपुर सराफा बाजार में 42 हजार 800 सौ रुपये पहुंच चुका सोना शानिवार देर शाम तक इसी में अटका रहा। हालांकि 22 कैरेट सोने का भाव प्रति 10 ग्राम 40 हजार दो सौ रुपये था।

न्यायधानी के सराफा कारोबारी श्रीकांत पांडेय का कहना है कि सोने में आई तेजी से चांदी को भी सपोर्ट मिला है। एक किलो चांदी का भाव 49 हजार 490 रुपये पहुंच गया है। सोने का भाव बढ़ने के कारण खरीदारी में भारी फर्क पड़ता है।

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निवेश के लिए तो सुरक्षित हो सकता है,लेकिन मांगलिक कार्य या फैशन के लिए खरीदारी मुश्किल हो जाती है। बाजार में फिलहाल सन्नाटा पसरा हुआ है। शादी-ब्याह का सीजन है। छत्तीसगढ़ में इस वक्त जमकर खरीदारी होती है। होली के बाद मार्केट में रौनक दिखेगी ऐसी उम्मीद है,लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार को देखकर ऐसा नहीं लग रहा है।

सोने के भाव में तेजी जारी, एक्सपर्ट से समझें- क्या ये निवेश का अच्छा मौका?

मुंबई. कोविड-19 के नए वेरिएंट (Covid-19 New Variant) की खबर से जहां शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है वहीं, सोने की कीमतों (Gold Rate Today) में तेजी जारी है. डॉलर इंडेक्स में कमजोरी और कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण गोल्ड के भाव में लगातार 8वें सप्ताह में तेजी जारी है. फरवरी 2023 के लिए MCX पर गोल्ड फ्यूचर का भाव ₹54,561 प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ. वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का हाजिर भाव 1,797 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ, जो पिछले शुक्रवार के बंद भाव से करीब 5 डॉलर प्रति औंस ज्यादा है.

कमोडिटी मार्केट के जानकारों के मुताबिक, नए सिरे से कोविड के डर और डॉलर इंडेक्स में नरमी की वजह से सोने की कीमतों में तेजी आ रही है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विस्तार के बाद वैश्विक आर्थिक मंदी का डर भी कम हुआ है. हालांकि, उन्होंने कहा कि सोने की कीमतों में वॉल्यूम कम रहने की उम्मीद है और इसलिए पीली धातु की कीमतें निकट अवधि में ‘साइड वेज टू पॉजिटिव’ यानी मामूली गिरावट के बावजूद तेजी का रूख बरकरार रहने की उम्मीद है.

भाव 54,000 से 55,000 रुपये के दायरे में रहने की उम्मीद

जानकारों के अनुसार, सोने की हाजिर कीमत 1,780 डॉलर से 1,820 डॉलर के दायरे में रह सकती है, जबकि घरेलू बाजार में सोने की कीमत 54,000 रुपये से 55,000 रुपये के कमोडिटी विकल्प क्या हैं दायरे में रहने की उम्मीद है. विशेषज्ञों ने निवेशकों को अल्पावधि के लिए ‘गिरावट पर खरीदारी’ की रणनीति बनाए रखने की सलाह दी और व्यापारियों से सोने में शॉर्ट पोजीशन लेने से बचने को कहा क्योंकि यदि निकट अवधि में कोविड के मामले बढ़ते रहे तो कीमती धातु ‘निवेश का सुरक्षित माध्यम’ बन सकती है.

गोल्ड फिर बना ‘सेफ हेवन एसेट’

मिंट की खबर के अनुसार, सोने की कीमतों में तेजी के कारणों पर मार्केट एक्सपर्ट सुगंधा सचदेवा ने कहा, “डॉलर इंडेक्स में सुस्ती है और यह 6 महीने के निचले स्तर पर ट्रेड कर रहा है, जो सोने की कीमतों के लिए एक प्रमुख कारक बना हुआ है. वहीं, दुनियाभर में कोविड के मामलों में बढ़ोतरी के कारण आर्थिक मंदी की चिंता बढ़ गई है और इसका सीधा असर सोने की कीमतों मजबूती के तौर पर देखने को मिल रहा है, क्योंकि ऐसी स्थिति में निवेशक गोल्ड को इन्वेस्टमेंट का सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं.

वहीं, स्वास्तिका इन्वेस्टमार्ट के सीनियर कमोडिटी रिसर्च एनालिस्ट निरपेंद्र यादव ने कहा, “मुद्रास्फीति में कमी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में बढ़ोतरी की धीमी गति ने 2022 के आखिरी में सोने की कीमतों में बढ़ोतरी को बल दिया है.” वहीं ग्लोबल स्तर पर कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों के कारण सोने के भाव में उछाल के साथ तेजी जारी है.

जिंस बाजारों के लिए सपाट बीता 2016, नए साल में ‘विकल्प’ सौदों का इंतज़ार

वर्ष 2016 में कुल 67-68 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हुआ।

जिंस बाजारों के लिए सपाट बीता 2016, नए साल में ‘विकल्प’ सौदों का इंतज़ार

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (फाइल फोटो)

घरेलू जिंस वायदा कारोबार के लिए 2016 बिना किसी बड़े उतार चढ़ाव का साबित हुआ। बाजार को अब 2017 में इसमें विकल्प अनुबंधों के कारोबार की शुरुआत और संस्थागत निवेशकों को प्रदेश दिए जाने अनुमति मिलने की उम्मीद है तेजी बाजार के कारोबार में तेजी आने की उम्मीद है। जिंस बाजारों में राष्ट्रीय स्तर के तीन बाजारों –एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई — के साथ साथ क्षेत्रीय बाजारों को मिला कर वर्ष 2016 में कुल 67-68 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। इससे पिछले साल 66 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हुआ था। यह चना और अरंडी वायदा में कारोबार निलंबित होने और नोटबंदी की वजह से कारोबार में व्यवधान पैदा होने के बावजूद हासिल किया गया। वर्ष के दौरान भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कमोडिटी एक्सचेंज के कारोबार को सुनियोजित बनाने और इन बाजारों की निगरानी बढ़ाने पर ध्यान दिया। निवेशकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये इनमें जोखिम प्रबंधन और निगरानी प्रणाली की मजबूती पर गौर किया गया। नियामक ने वर्ष के दौरान इन बाजारों में वायदा कारोबार के साथ साथ अब ‘विकल्प’ कारोबार शुरू करने की भी सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दे दी।

सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘जिंस वायदा बाजार के सेबी के नियंत्रण में आये एक वर्ष से अधिक समय हो गया है। वर्ष 2016 अच्छा रहा है। हमने बाजार को सुरक्षित बनाने के लिये सभी कदम उठाये हैं। अगला कदम बाजार को अधिक गहरा और इसमें भागीदारी को विस्तार देना है।’ उन्होंने कहा कि नियामक जिंस बाजार में ‘वायदा’ के साथ साथ ‘विकल्प’ के अनुबंधों के कारोबार शुरू कराने के लिये दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने में लगा है। ‘हम मध्य जनवरी तक इन दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दे देंगे।’ सेबी अधिकारी ने कहा कि कृषि और गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों से एक-एक जिंस में ‘विकल्प’ कारोबार शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है। कमोडिटी बाजार एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स के अधिकारियों का कहना है कि वह विकल्प (ऑप्शन) कारोबार शुरू करने के लिये पूरी तैयारी में है।

उन्होंने कहा कि कमोडिटी वायदा (डेरिवेटिव) बाजार में अब तक खुदरा निवेशक ही खरीद-फरोख्त करते रहे हैं, ‘अब हम संस्थागत निवेशकों और अन्य वित्तीय कारोबारियों को इसमें निवेश की अनुमति देने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा हम दिशा में कदम दर कदम आगे बढ़ेंगे।’ मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) के प्रबंध निदेशक और सीईओ मुरुगंक परांजपे ने कहा, ‘जैसे ही हमें खास उत्पादों के बारे में सूचना मिलेगी, हम उन्हें शुरू करने के लिये तैयार होंगे।’ उन्होंने कहा कि एक्सचेंज विभिन्न वायदा उत्पादों में कारोबार की तैयारी के लिये तैयारी के विभिन्न स्तरों पर है। परांजपे ने की एमसीएक्स ने अपने क्लीयरिंग कार्पोरेशन को मान्यता दिये जाने के बारे में पहले ही सेबी के पास आवेदन कर दिया है।

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एनसीडीईएक्स के प्रबंध निदेशक और सीईओ समीर शाह ने कहा कि 2016 अड़चनों और चुनौतियों भरा वर्ष रहा। हालांकि, उन्होंने कहा कि 2017 ‘वृद्धि बढ़ाने’ वाला वर्ष रहने की उम्मीद है। ‘वर्ष 2017 नये उत्पादों और नई सेवाओं वाला वर्ष रहने की उम्मीद है। वर्ष के दौरान जोखिम प्रबंधन, निगरानी और भंडारगृह जैसे क्षेत्रों में मजबूती के रास्ते पर कमोडिटी विकल्प क्या हैं आगे बढ़ा जायेगा।’ एनसीडीईएक्स में कारोबार में 2016 में काफी गिरावट आने के मुद्दे पर शाह ने कहा कि अरंडी और चना में वायदा कारोबार निलंबित होने और नोटबंदी की वजह से पैदा बाधाओं की वजह से यह गिरावट रही।

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एमएसपी लीगल हो या नहीं, कीमतों में उतार-चढ़ाव से किसानों की सुरक्षा जरूरीः सिराज हुसैन

कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि एमएसपी के मुद्दे का कोई आसान समाधान नहीं है। लेकिन उन्होंने 2 बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। पहला, क्या हमारी आयात-निर्यात नीति यह सुनिश्चित कर सकती है कि किसी भी कमोडिटी का आयात करने पर उसकी लैंडेड कीमत एमएसपी से कम नहीं होगी। दूसरा, क्या यह संभव है कि सरकार किसी भी समय कमोडिटी के निर्यात पर रोक ना लगाए

Team RuralVoice WRITER: Sunil Kumar Singh

एमएसपी लीगल हो या नहीं, कीमतों में उतार-चढ़ाव से किसानों की सुरक्षा जरूरीः सिराज हुसैन

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) एक जटिल मुद्दा है और इसे लागू करने के लिए कई बातों पर विचार करना पड़ेगा। जैसे फाइनेंशियल, प्रशासनिक, न्यायिक, राजनीतिक वगैरह। किसानों की समस्याएं दूर करने के लिए एमएसपी के अलावा दूसरे विकल्पों पर भी विचार करने की जरूरत है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड अवॉर्ड्स 2022 में आयोजित पैनल चर्चा में विशेषज्ञों ने ये विचार व्यक्त किए। 23 दिसंबर को आयोजित इस कॉन्क्लेव में पैनल चर्चा का विषय था- लीगल एमएसपी का औचित्य और आधार तथा इसका तात्पर्य- केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका।

कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि एमएसपी के मुद्दे का कोई आसान समाधान नहीं है। लेकिन उन्होंने 2 बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। पहला, क्या हमारी आयात-निर्यात नीति यह सुनिश्चित कर सकती है कि किसी भी कमोडिटी का आयात करने पर उसकी लैंडेड कीमत एमएसपी से कम नहीं होगी। दूसरा, क्या यह संभव है कि सरकार किसी भी समय कमोडिटी के निर्यात पर रोक ना लगाए।

हुसैन के अनुसार लीगल एमएसपी की मांग का आधार यह है कि किसानों को कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव से बचाया जा सके। इस समस्या के एक हल के तौर पर कीमतों में अंतर के भुगतान के विकल्प पर चर्चा की गई थी, लेकिन यह तभी संभव है जब एपीएमसी मजबूत हो, उनके पास पुख्ता कागजात हो और उनका प्रबंधन अच्छा हो।

एक और जटिलता बताते हुए हुसैन ने कहा कि अगर आप एमएसपी को लीगल बनाते हैं तो विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और ग्लोबल मार्केट से अनेक तरह के सवाल आएंगे। उन्होंने अमेरिका के कमोडिटी विकल्प क्या हैं एक सांसद का उदाहरण दिया जिन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडेन को पत्र लिखकर भारत सरकार की तरफ से दी जाने वाली सब्सिडी का विरोध किया है। हुसैन ने कहा कि सिर्फ रणनीतिक वजहों से अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ में हमारे खिलाफ शिकायत नहीं की है। वर्ना कई मामलों में वे भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में जा चुके हैं और वहां जीते भी हैं।

पूर्व कृषि सचिव ने कहा कि एमएसपी का मुद्दा जटिल होने के कारण इस पर विचार के लिए पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है, लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि निकट भविष्य में समिति कोई समाधान लेकर कमोडिटी विकल्प क्या हैं आएगी। एमएसपी को कानूनी दर्जा देने पर जो भी निर्णय हो अथवा समिति की रिपोर्ट में जो भी कहा गया हो, कृषि कमोडिटी की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव रोकने के लिए कोई न कोई फैसला करना पड़ेगा।

कोऑपरेटिव एमएसपी से करीब से जुड़े हैंः संदीप नायक

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी) के डायरेक्टर जनरल संदीप कुमार नायक ने कोऑपरेटिव और एमएसपी के बीच संबंधों के चर्चा की। उन्होंने कहा, हमारे देश के 94 से 95 फ़ीसदी किसान किसी न किसी कोऑपरेटिव के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि उत्पादकता, कर्ज, भंडारण और बाजार से संबंधित सूचनाएं- यह सभी बातें एमएसपी के मुद्दे से सीधे जुड़ी हैं। इन सब में कोऑपरेटिव बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

सभी परिस्थितियों में एमएसपी श्रेष्ठ कीमत नहींः प्रो रमेश चंद

नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद्र ने कहा कि अनेक किसान संगठन एमएसपी को कानूनी तौर पर बाध्यकारी करने की मांग कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि उन्हें उनकी उपज की श्रेष्ठ कीमत मिले। वे कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव से भी खुद को बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, मेरे विचार से एमएसपी सभी परिस्थितियों में श्रेष्ठ कीमत नहीं हो सकती। यह स्थिरता जरूर ला सकती है, लेकिन श्रेष्ठता नहीं। सबसे अच्छी कीमत तो प्रतिस्पर्धा से ही आएगी। अगर बाजार में प्रतिस्पर्धा होगी तो किसानों को उनकी फसल की सबसे अच्छी कीमत भी मिलेगी।

उन्होंने कहा कि सबसे अधिक ग्रोथ उन सेक्टर में दिख रही है जिनमें कीमतों पर सरकार का हस्तक्षेप कम है। इसके लिए उन्होंने कृषि से संबंधित क्षेत्र डेयरी, फिशरीज और बागवानी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि विशेष परिस्थितियों में एमएसपी की अपनी भूमिका जरूर हो सकती है, कमोडिटी विकल्प क्या हैं लेकिन यह बाजार के उतार-चढ़ाव से निपटने में किसानों की उद्यमिता को भी नष्ट करती है।

एमएसपी को कानूनी तौर पर बाध्यकारी करने की मांग पर उन्होंने कहा कि इसके कई प्रभाव होंगे। ऐसा करने में तीन कीमतों को ध्यान में रखना पड़ेगा। एक है एमएसपी, दूसरा उचित बाजार मूल्य और तीसरा बाजार का कमोडिटी विकल्प क्या हैं वास्तविक मूल्य। उचित बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा है तब तो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने का फायदा होगा, लेकिन अगर उचित बाजार मूल्य एमएसपी से कम है तो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने पर बिजनेसमैन बाजार से उपज खरीदने से पीछे हट जाएगा। तब सरकार के लिए राजकोषीय समस्या आएगी।

खाद्य सब्सिडी दोगुनी करनी पड़ेगीः प्रो सीएससी शेखर

इंस्टीट्यूट आफ इकोनामिक ग्रोथ (आईजी) के प्रोफेसर तथा एमएसपी समिति के सदस्य प्रो सीएससी शेखर ने भी कहा कि एमएसपी का मुद्दा काफी कमोडिटी विकल्प क्या हैं जटिल है। उन्होंने कहा कि इसके लिए तीन बातों पर विचार करने की जरूरत है। पहला, क्या यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य है? दूसरा, क्या हमारे पास प्रशासनिक क्षमता है? तीसरा, न्यायिक रूप से यह कितना संभव हो सकेगा? उन्होंने कहा कि उन 2019-20 के उत्पादन के आधार पर आईजी ने कुछ आकलन किए हैं इसमें पांच अनाज, पांच दालें और चार तिलहन को शामिल किया गया है। इस आकलन में पाया गया कि अगर इन 14 फसलों के लिए एमएसपी को कानूनी दर्जा दिया जाता है तो हर साल करीब 3 लाख 40 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसके लिए खाद्य सब्सिडी लगभग दोगुनी करनी पड़ेगी।

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