आखिर कौन तय करता है रुपए का मूल्य?
हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं, जिसे भारत ने 1975 से अपनाया है।

आज़ादी से अब तक सिर्फ 1 बार ऐसा हुआ कि रुपया लगातार दो या ज्यादा साल मज़बूत हुआ

10 साल में भारतीय करेंसी के मुकाबले डॉलर 20.22 रुपए तक महंगा हो गया है। अक्टूबर 2008 में रुपया 48.88 प्रति डॉलर के स्तर पर था, जो अब 69.10 के स्तर पर है। जल्द ही इसके 70 के स्तर पर पहुंचने की भी डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? आशंका है। हालांकि रुपए के कमजोर होने का यह ट्रेंड अप्रैल 2016 से जारी है। वैसे आजादी के बाद से अब रुपए के मजबूत और कमजोर होने पर नजर डालें, तो कुछ और भी चौंकाने वाली जानकारियां सामने आती हैं। यह भी साफ हो जाता है कि इन 70 वर्षों में एक डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? बार ही ऐसा मौका आया है, जब रुपया लगातार दो डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? या ज्यादा बार मजबूत हुआ हो। ऐसा 2008 से 2011 के बीच हुआ। अक्टूबर 2008 में रुपया 48.88 प्रति डॉलर था, जो 2009 में 46.37 के स्तर पर पहुंचा। जनवरी 2010 में रुपए ने 46.21 के स्तर को छुआ। इसके बाद अप्रैल 2011 में रुपया एक बार फिर मजबूत होकर 44.17 के स्तर पर पहुंच गया।

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

रुपए के मूल्य में गिरावट के मायने

व्यापक व्यापार घाटे के साथ हाल ही में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट दर्ज़ की गई और कुछ ही समय पहले यह अब तक के निचले स्तर पर पहुँच गया। रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक सभी के लिये चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में यह जानकारी होना आवश्यक है कि रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट के डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? मायने क्या हैं?

  • विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है।
  • अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात मूल्य में कमी।
  • उदहारण के लिये भारत को कच्चा तेल आदि खरीदने हेतु मूल्य डॉलर के रूप में चुकाना होता है, इस प्रकार भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से जितने डॉलर खर्च कर तेल का आयात किया उतना उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ इसके लिये भारत उतने ही डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करे तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में हुई कमी को पूरा किया जा सकता है। लेकिन यदि भारत से किये जाने वाले निर्यात के मूल्य में कमी हो तथा आयात कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी स्थिति में डॉलर खरीदने की ज़रूरत होती है तथा एक डॉलर खरीदने के लिये जितना अधिक रुपया खर्च होगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।

डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर , 14 पैसे टूटकर 79.52 के स्तर पर हुआ बंद

Rupee Close- डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी देखने को मिल रही है। डॉलर के मुकाबले रुपया 14 पैसे कमजोर होकर 79.52 के स्तर पर बंद हुआ।

Rupee Open- गुरुवार के शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया 11 पैसे मजबूत होकर डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? 79.52 के स्तर पर जाता नजर आया। कच्चे तेल की कीमतों में आई नरमी और विदेशी निवेशकों की तरफ से डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? आ रहे फंड से रुपये को सपोर्ट मिला है। फॉरेक्स ट्रेडरों का कहना है कि अमेरिका के महंगाई आंकड़ों के डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? आने के पहले USD/INR साइडवेज कारोबार करता नजर आ सकता है।

इंटरबैक फॉरेन एक्सचेंज पर डॉलर के मुकाबले रुपया 79.59 के स्तर पर खुला और शुरुआती कारोबार में 79.52 पर जाता नजर आया। जो सोमवार के क्लोजिंग में 11 पैसे की मजबूती दिखाता है। पिछले कारोबारी दिन यानी सोमवार को रुपया 79.63 के स्तर पर बंद हुआ था। वहीं मुहर्रम के अवसर पर 09 अगस्त को बाजार बंद था।

आम आदमी पर पड़ेगा असर

बता दें कि भारत जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है। अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? के शहरों से होता है। अगर रुपए में इसी तरह गिरावट जारी रही तो आयात महंगा हो जाएगा और आपको ज्यादा खर्च करना होगा।

भारत 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ेगी। इससे माल ढुलाई महंगी हो जाती है। ऐसे में रुपये के कमजोर होने से रसोई से लेकर घर में उपयोग होने वाले रोजमर्रा के सामान के दाम बढ़ सकते हैं जिससे आपकी जेब हल्की होगी। साथ ही पेट्रोल-डीजल महंगा होने से किराया भी बढ़ सकता है जिससे कहीं आना-जाना महंगा हो सकता है। भारत खाद्य तेल का 60 फीसदी आयात करता है। इसकी डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? खरीद डॉलर में होती है। ऐसे में रुपए के कमजोर होने से खाद्य तेलों के दाम घरेलू बाजार में बढ़ सकते हैं।

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