खजुराहो के मंदिरों में कामुक भाव बहुत सामान्य है। चौड़े कूल्हों, भारी स्तनों और चमकदार आंखों वाली स्वर्गीय अप्सराओं की मूर्तियां आमतौर पर कंदरिया महादेव और विश्वनाथ मंदिर में पाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि यह मूर्तियाँ स्त्री सौंदर्य और प्रजनन क्षमता के विचार को दर्शाती हैं। मंदिरों की दीवारों पर दर्शाए गए अन्य दृश्य नरथारा (मानव जीवन चक्र) का एक भाग हैं, जो दर्शाता है कि यौन प्रसव और काम मानव जीवन का एक अनिवार्य पहलू है।
रंग का वैज्ञानिक पहलू
रंग अथवा वर्ण का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं।
लोहे का एक टुकड़ा जब धीरे-धीरे गरम किया जाता है तब उसमें रंग के निम्न परिवर्तन दिखाई देते हैं। पहले तो वह काला दिखाई पड़ता है, फिर उसका रंग लाल होने लगता है। यदि उसका ताप बढ़ाते जाएँ तो उसका रंग क्रमश: नारंगी, पीला इत्यादि होता हुआ सफ़ेद हो जाता है। जब लोहा कम गरम होता है। तब उसमें से केवल लाल प्रकाश ही निकलता है। जैसे-जैसे लोहा अधिक गरम किया जाता है वैसे-वैसे उसमें से अन्य रंगों का प्रकाश भी निकलने लगता है। जब वह इतना गरम हो जाता है कि उसमें से स्पेक्ट्रम के सभी रंगों का प्रकाश निकलने लगे तब उनके सम्मिलित प्रभाव से सफ़ेद रंग दिखाई देता है। यदि गैसों में विद्युत विसर्जन हो, तो उससे भी प्रकाश उत्पन्न होता है। जब हवा में विद्युत स्फुल्लिंग उत्पन्न होता है तब उससे बैंगनी रंग का प्रकाश निकलता है। विभिन्न गैसों में विद्युत विसर्जन होने से विभिन्न रंग का प्रकाश निकलता है। [1]
प्रकाश का रंग
प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में होता है। विभिन्न रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य भिन्न होता है। लाल रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (6.5 x 10 सेंटीमीटर) सबसे अधिक और बैंगनी रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (4.तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू 5 x 10 सेंटीमीटर) सबसे कम होता है। अन्य रंगों के लिए तरंगदैर्ध्य इसके बीच में होता है। विभिन्न तरंगदैर्ध्य की विद्युत चुंबकीय तरंगों के आँखों पर पड़ने से रंगों की अनुभूति होती है। रंग वास्तव में एक मानसिक अनुभूति है, जैसे स्वाद या सुगन्ध। बाह्म जगत् में इसका अस्तित्त्व रंग के रूप में नहीं, बल्कि विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में होता है।
जब किसी प्रकाश स्रोत से निकलने वाला प्रकाश किसी पदार्थ पर पड़ता है और उससे परावर्तित होकर (या पार जाकर) आँखों पर पड़ता है, तब हमें वह वस्तु दिखाई देती है। किसी पदार्थ पर पड़ने वाला प्रकाश यदि बिना किसी रूपांतरण के हमारी आँखों तक पहुँचे, तो हमें वह वस्तु सफेद दिखाई देती है। उदाहरण के लिए लाल रंग के प्रकाश में देखने पर लाल वस्तु भी सफेद दिखाई देती है। वही वस्तु सफ़ेद प्रकाश में लाल और नीले प्रकाश में काली दिखाई देती है।
अवशोषण
अपारदर्शी या पारदर्शी, सभी रंगीन पदार्थों का रंग वर्णात्मक अवशोषण के कारण दिखाई पड़ता है। इसका अर्थ यह है कि रंगीन वस्तुएँ कुछ रंग के प्रकाश को अन्य रंगों के प्रकाश की अपेक्षा अधिक अवशोषित करती हैं। किस रंग का प्रकाश अधिक अवशोषित होगा, यह वस्तु के रंग पर निर्भर करता है। ऊपर के उदाहरण में कोई वस्तु लाल इसलिए दिखाई देती है कि उस पर पड़ने वाले सफेद प्रकाश में से केवल लाल प्रकाश ही परावर्तित हो पाता है, शेष सभी रंग पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाते हैं। लाल वस्तु से लाल रंग का प्रकाश पूर्ण रूप से परावर्तित होता है, इसलिए सफ़ेद रंग के प्रकाश में वह लाल दिखाई देती है। यदि वही वस्तु हम नीले प्रकाश में देखें, तो वह हमें काली इसलिए दिखाई देगी क्योंकि वह लाल के अतिरिक्त अन्य सब प्रकाश अवशोषित कर लेती है। अत: नीला प्रकाश उसमें पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाएगा और आँखों तक कोई प्रकाश नहीं पहुँचेगा।
प्रकाश का वर्ण विक्षेपण
- जब सूर्य का प्रकाश प्रिज़्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज़्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से श्वेत प्रकाश का अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया को वर्ण विक्षेपण कहते हैं।
- सूर्य के प्रकाश से प्राप्त रंगों में बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
पारदर्शी पदार्थ में जैसे-जैसे प्रकाश के रंगों का अपवर्तनांक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उस पदार्थ में उसकी चाल कम होती जाती है। जैसे- काँच में बैंगनी रंग के प्रकाश का वेग सबसे कम तथा अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है तथा लाल रंग का वेग सबसे अधिक एवं अपवर्तनांक सबसे कम होता है।
खजुराहो मंदिर
भारत में 20 लाख से अधिक हिंदू मंदिर हैं। यह मंदिर भारतीय संस्कृति की विविधता और जीवन प्रणाली को दर्शाते हैं। भारत में मंदिर वास्तुकला ने हमेशा एक अंतर्निहित दृष्टि को अपनाया है। यह एक अनुभूति, ब्रह्मांड और समय का प्रतिक है। हिंदू मंदिरों के निर्मिति में कला और वास्तुकला को शिल्प शास्त्र में अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। इसमें नागर या उत्तरी शैली, द्रविड़ या दक्षिणी शैली और वेसरा या मिश्रित शैली के तीन मुख्य प्रकार की मंदिर वास्तुकला का उल्लेख है।
नागर शैली की परिभाषित विशेषताएँ गर्भगृह, शिखर (वक्रीय बुर्ज), और मंडपा (प्रवेश द्वार) हैं। नागर शैली का विकास धीरे-धीरे हुआ क्योंकि पहले के मंदिरों में केवल एक ही शिखर था, जबकि बाद के मंदिरों का निर्माण कई शिखर के साथ किया जाने लगा और गर्भगृह को हमेशा सबसे ऊंचे बुर्ज के नीचे पाया जाने लगा।
खजुराहो के मंदिर नागर शैली के मंदिरों का एक अद्भुत उदाहरण हैं क्योंकि मंदिरों में एक गर्भगृह, एक छोटा आंतरिक-कक्ष (अंतराल), एक अनुप्रस्थ भाग (महामण्डप), अतिरिक्त सभागृह (अर्ध मंडप), एक मंडप या बीच का भाग और एक चल मार्ग (प्रदक्षिणा-पथ) जो बड़ी खिड़कियों के साथ है।
पश्चिमी समूह के मंदिर
पश्चिमी समूह के मंदिर बमीठा-राजनगर मार्ग के पश्चिम में सिब-सागर के तट पर स्थित है। इनमें सात संस्करण शामिल हैं तथा वह शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के लिए समर्पित हैं।
मंदिर परिसर में देवी काली की योगिनियों अर्थात महिला दासियों की संख्या से संबंधित 64 छोटी कोशिकाएँ हैं, जिन पर मंदिर का नाम रखा गया है। 64 कोशिकाओं में से किसी पर भी अब कोई चित्र नहीं रहा है। यह मंदिर सिब-सागर झील तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू के दक्षिण पश्चिम में कम उचाई वाले चट्टान पर स्थित है। पूरी तरह से ग्रेनाइट से निर्मित तथा उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में स्थित खजुराहो में यह एकमात्र मंदिर है। मंदिर विशाल नीव पर खड़ा है और इसमें 104 फुट लंबा और 60 फुट चौड़ा एक प्रांगन है। यह 65 कोशिकाओं से घिरा हुआ है, जिनमें से केवल 35 कोशिकाएं बची हैं। कोशिकाओं को छोटे मीनार या शिखर के साथ छत दी गई है, जिसके निचले भाग को चैत्य खिड़कियों की नकल में त्रिकोणीय आभूषणों से सजाया गया है। मंदिर की निश्चिगत आयु देखने के लिए कोई दिनांकित शिलालेख उपस्थित नहीं है।
केंद्रीय विवि में आइंस्टीन के सिद्घांत पर चर्चा करेंगे शोधकर्ता
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में (जीटीआर) जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी सिद्धांत के पर देश-विदेश में शोधकर्ता चर्चा करेंगे। इसके लिए सीयू धर्मशाला के शाहपुर स्थित अस्थायी शैक्षणिक परिसर में सोमवार से विशेष कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश-विदेश से करीब 30 शोधकर्ता भाग लेंगे, जबकि इस विषय के नौ वैज्ञानिक भी कार्यशाला में भाग ले रहे हैं।
सीयू के भौतिक और खगोल शास्त्र विभाग की आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सोमवार से शुरू होगी, जबकि इसका समापन 12 मार्च को होगा। आयुका (इंटर यूनिवर्सिटी तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू सेंटर फॉर अस्ट्रॉनोमी एडं अस्ट्रोफिजिक्स) और विज्ञान एवं तकनीकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से हो रही इस संगोष्ठी में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना को समझने में उपयोगी जीटीआर सिद्धांत पर मुख्य रूप से चर्चा होगी।
तरंग - समानार्थी।, विलोम शब्द।, अर्थ, उदाहरण
तरंग (Wave) का अर्थ होता है - 'लहर'। भौतिकी में तरंग का अभिप्राय अधिक व्यापक होता है जहां यह कई प्रकार के कंपन या दोलन को व्यक्त करता है। इसके अन्तर्गत यांत्रिक, विद्युतचुम्बकीय, ऊष्मीय इत्यादि कई प्रकार की तरंग-गति का अध्ययन किया जाता है।
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